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Sushma Parakh

Romance

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Sushma Parakh

Romance

पूछूं तो कहता है

पूछूं तो कहता है

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270



ना इनकार करता है ,ना इक़रार करता है

ना बात करता है ,ना साथ रहता है

समय की फ़रियाद लगाऊ तो 

ना वो ग़ौर करता है

एक पल भी ना वो मेरे संग होता है

पूछूं तो कहता है

वो मुझे बहुत प्यार करता है


ना कोई तोहफ़ा देता है

ना कभी कॉल करता है

मेरी कॉल को भी वो 

इग्नोर करता है

पूछूं तो कहता है

वो मुझपे ही मरता है


ना वेकेशन घुमाता है

ना प्यार जताता है

साथ चाहूँ तो भी वो 

अपने काम में रहता है

पूछूं तो कहता है

वो मेरे लिए ही जीता है


ये कैसा प्यार हैं उसका 

शिकायत मैं लगाती हूँ 

ना शिकायत सुनता है

ना मुझे मनाता है

पूछूं तो कहता है

मुझे खोने से डरता है


कुछ नहीं तू मेरा 

अजनबी सा रहता है

दुनिया से क़रीब तू 

मुझे ख़ुद से दूर रखता है

पूछूं तो कहता है

साथ तेरा मंज़िल सा लगता है


दिल नादान है मेरा 

कुछ समझ नहीं पाता 

ये तेरे दिल का मेरे दिल से 

>

बड़ा प्यारा है नाता 

फ़ीलिंग्स अपनी छुपाता है

पूछूं तो कहता है

तेरा मेरा सात जन्मों का नाता है


एक पल भी वो अपना 

ना मुझपे जाया करता है

अपनी ही धुन में 

वो व्यस्त रहता है

पूछूं तो कहता है

मेरा प्यार उसकी धड़कन 

में चलता है


कितना चालाक है वो 

अपनी रफ़्तार में रहता है

एक पल भी ना मुझपे

वो बर्बाद करता है

पूछूं तो कहता है

साँसों के तारों में 

मेरा नाम रटता है


निश्चल ये तेरा प्यार 

बड़ा प्यारा लगता है

हर बार बेवक़ूफ़ बनने को 

मेरा मन करता है

सच्चा हैं तू ,अपने काम पे 

ज़ी जान से लगता है

पूछूं तो कहता है। 

मैं नाराज़ ना हो जाऊँ

बस इस बात से डरता है


ना कुछ लेना भाता है

ना कुछ देना पड़ता है

प्यार वो गहरा होता है

जो समर्पण भाव से होता 

नज़र से नज़र में तृप्त होता है

पूछूं तो कहता है

ताक़त हूँ मैं उसकी ,

मेरा दीद उसकी आँखों में रहता है।


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