जीवन
जीवन
कहने को सफ़र जीवन,
सब साथ चलते हैं
लेकिन सब अपने अपने
हालात से लड़ते हैं,
सुखी नहीं कोई यहाँ,
मात्र दिखावा करते है
अंदर ही अंदर सब,
अपनी जंग लड़ते हैं,
भरोसा नहीं क्षण का,
ख़्वाब जन्मों का बुनते हैं
कहते हैं सब अपनी ही,
नहीं किसी की सुनते हैं,
लिप्त लालच में जिसका मन
वो अशांत रहता हैं
सुखी वही जग में
जिसे संतोष होता है,
भोगों में मिले आनंद
ये भोगी समझते हैं,
संत जाने त्याग रसमय
वो संयम से जीते है,
लिखने को कविता
कवि शब्दों को चुनते है,
चुने शब्दों से वो दिल के
भावों को गढ़ते है,
शब्दों में भरकर भाव
अर्थ गहरा रचते है,
महसूस करके शब्दों को
एहसास भावों के सीते हैं,
एक राह में राही हज़ारों
चलते हैं,
मूर्ख हैं वो जो समझे
सब हमारा पीछा करते हैं,
विद्या नहीं वस्तु जो हम
छीन सकते है
वो अपनी गढ़ते हैं
हम अपनी गढ़ते है,
ख़ुद को सर्वगुण संपन्न
जो समझते हैं,
औरों को नहीं वो
छल स्वयं से करते हैं।