नारी
नारी
बना दे आशियाँ जन्नत, हैं ताक़त वो नारी में
दर्द अपनों का सहकर, बने मरहम बीमारी में
कष्टों की काली दुपहरी में ना घबराना
भोर की स्वर्णिम लाली सा ,हैं प्रकाश नारी में ,
हैं अपनापन और वात्सल्य, भारत की नारी में
टूटे स्वप्न को बुनकर, रचे उम्मीद उदासी में
ढलती साँझ में ढलकर ,ना टूट जाना तुम
निखरे टूट कर ज़्यादा ,हैं हिम्मत वो नारी में ,
थी कभी क़ैद ये नारी ,घर की चार दीवारी में
आज हुई सुशोभित ,कीर्तिमानों की क्यारी में
जकड़े पंख थे लेकिन ,उड़ानों का हौसला था
सजे हर क्षेत्र में वर्चस्व, हैं हुनर वो नारी में …