आखिर क्या भूल थी मेरी....
आखिर क्या भूल थी मेरी....
हे अयोध्या नरेश एक बार बतलाना.....
चली तुम्हारे संग धूप छाँव की डगर में,
जली तुम्हारे संग विमाता की डाह अग्नि में,
फिर क्यों अग्नि परीक्षा मेरे हिस्से आई,
हे मर्यादा पुरुषोत्तम एक बार बतलाना....
तुम्हारे ही चरणों में सर्वस्व किया अर्पण,
तुम्हारी ही नगरी को माना स्वर्ग का दर्पण,
फिर क्यों दाँव पर लगा मेरा ही सतीत्व,
हे दिनबंधु दीनानाथ एक बार बतलाना....
क्यों लक्ष्मण रेखा पार का दोष लगाया,
क्यों मेरी ममता को भी परखा गया,
हे रघुनंदन बस एक बार बतलाना....
जिस सिया की खातिर शिव धनुष तोड़ा,
जिस सिया की खातिर रावण का दंभ तोड़ा ,
फिर उसी सिया का क्यों परित्याग हुआ....
हे सियापति रामचंद्र बस एक बार बतलाना,
आखिर क्या भूल थी मेरी...