STORYMIRROR

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Romance

4  

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Romance

लौटना

लौटना

1 min
230

बहुत पहले जिनसे हम विछड़े थे,

कल ही वो अचानक फिर लौटे थे।

मिले तो घबराये से और शर्माये से थे,

जिद छूटी सी और एहसास में थे।

न कोई गिला न कोई शिकवा था,

उम्र के दोहराये पर बस मिलना था,

रेगिस्तान बने दिल की जमीं पर नमी,

जैसे सदियों पुरानी बहार का लौटना था।

आज सोचा तो लगा कि वो अपना था,

जब सीने से लिपट के बेहताश रोया था।

भुला कर हमें नहीं पुराने शिकवों को जब,

वो जिंदगी की तलाश में फिर आया था।

उसके एहसास ने मेरे हालात को बदल दिया,

जब उसकी वफा ने मेरा विश्वास जीत लिया,

हम साथी थे साथी ही रहेंगे उम्र भर के लिये,

ऐसा विश्वास मन को मिला किस्मत ने दिया।

भूल कर सारे गिले शिकवे हम मिले दिल से,

आकर जिसने मेरे दर फिर चाहा हमें मन से।

अब लौटना ही मेरा प्यार वफा का नग्मा है,

जिंदगी में कल अपनों का लौटना हुआ है।

इंतजार नहीं जब लौट आई खुशी है,

अब पुराने दर्द की आवाज़ में फिर हंसी है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance