बेपनाह मोहब्बत
बेपनाह मोहब्बत
मेरी अपनी ही चाहत का फैसला कुछ यूँ हो पाया,
तमन्ना पूरी करने में मैं खुद को इस तरह भुला बैठा,
जिसको महफिल में देखा था उसे अपना बना बैठा,
नजरें मिली जब उनसे मेरी, तब प्यार मेरा हो पायाI
आज दुनिया मेरी खूबसूरत हो गई जो मैंने तुझे पाया,
तेरे प्यार की खातिर मैं अपना सब कुछ लुटा बैठा,
तेरे लिए ही तेरे हर दर्द को अब मैं अपना बना बैठा,
अब तो तुझसे मिलने का मुझे एक बहाना मिल पायाI
हम इसी के सहारे बेपनाह मोहब्बत करते चले गए,
तमन्ना तो बस एक रखी थी हमने उसी की जिगर में ,
अब लगता है हमें अपने वजूद का ख्याल ही नहीं रहाI
महज उसके नाम से ही अब यूँ हम संवरते चले गए,
इस कदर हम पर प्यार का खुमार चढ़ा उसकी चाहत में ,
अब तो जिंदगी में पीछे मुड़ने का सवाल ही नहीं रहाI

