रूह का इश्क़
रूह का इश्क़
महकते गुलाब की तरह
तुम्हारी मुस्कुराहट है
जाने किस तरह
अपने अंदाज़ की
ये आहट है।
हम भी हैं
गुमशुदा और
तुम भी हो
खोये खोये
आज फिर
ख़याल की
तेरे
मानो कोई
नई शरारत है।
तुम नहीं बदले
जब हमारे लिए
हम क्यों
बदल गए
जाने तुम्हारे लिए,
तुम्हारा इश्क़ एक
गहरी साज़िश की
तरह रचता है
षड्यंत्र नए नए,
हमारे इश्क़ की
बातें
इस सब से अनजानी है।
बदल जाते ग़र
हम भी मौसम की तरह
बात जम जाती
दिल में शिकायत की तरह
अब होश है बेमानी
इश्क़ रह गया
जिस्मानी।
आत्मा का इश्क़
अब आत्मा से नहीं
बल्कि बदन का
बदन से होता है
इश्क़ अब वही
सच्चा है
जिसमें बिस्तर गर्म
होता है।
बाकि रूह का
इश्क़ अब
धुएं की तरह है
आज कोई समझा
तो ठीक
वरना जग
बेगाना है।
रूह के फ़रिश्ते
अब रूह को तरसते है
और ज़िस्म को
रगड़ने वाले यहाँ
इश्क़ का दम
भरते हैं।
मानो
आँख का आंसू का
अब कोई मोल
रहा नहीं
ऐसा कोई पत्थर नहीं
जहाँ सर हमने
धरा नहीं
फ़र्क़ सिर्फ इतना ही है
तुम्हारा खुदा
तुम्हारा है
और हमारा हमसे
ही ज़ुदा है।
कोई सूरत निकालो
जिस से दिल
फिर दिल बन जाये
और जितने भी
संग है
वो संगदिल न रहे.
हरदिल में प्यार
एक नए सिरे से
अपने को अपने में
रंग ले।
आओ मुहब्बत की
बात करें और
मुहब्बत में
हम मुहब्बत भर लें
मुहब्बत में हम
मुहब्बत भर लें।
