STORYMIRROR

डॉ. अरुण कुमार निषाद

Tragedy

3  

डॉ. अरुण कुमार निषाद

Tragedy

जल संकट

जल संकट

1 min
175


नदियाँ

सिकुड़ती

जा रही हैं

दिन-प्रतिदिन

और हम

मनमाने ढ़ंग से

फेंक रहे हैं

कूड़े-कचरे

इन नदियों में

गहराई और चौड़ाई

नाममात्र की

रह गई है

इन नदियों की

गर

यही हाल

रहा तो

विलुप्त हो

जायेंगी

सभी नदियाँ

धीरे-धीरे

सरस्वती

की तरह ।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy