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Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy

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Preeti Sharma "ASEEM"

Tragedy

विवाह......एक पिता का दर्द

विवाह......एक पिता का दर्द

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ऐसा किया.... बेटा तुम्हारा विवाह।

अब सोचता हूँ तो......

दिल से निकले आह !

बेटा तुम्हारा विवाह।


बहुत चाव था मुझे और तेरी मां को।

हसरतों से भरी उम्मीदों और दिल की आरजू को।

मेरे फर्ज पूरे होने का समय आ गया था।

तेरा विवाह करके दिल सुरखरू हो गया था।


ऐसा किया.... बेटा तुम्हारा विवाह।

अब सोचता हूँ तो......

दिल से निकले आह !

बेटा तुम्हारा विवाह।

पता ना तेरा घर बसाते ही घर बिखर जायेंगा।

सपना मेरे परिवार का इतनी जल्दी टूट जायेंगा।


मां तेरी कहती थी.... बेटी बना के रखूंगी।

मैंने भी बेटी मान पांव हाथ ना लगवाया था।

मां का दर्जा दे बहनों ने मान बढ़ाया था।

पर उससे किसी रिश्ते का मान ना बढाया था।


बचपना है यह ...सोच सब ने समझाया था।

उस की नज़र में सब गलत थे।

कुछ समझ ना आया था।


ऐसा किया.... बेटा तुम्हारा विवाह।

अब सोचता हूँ तो......

दिल से निकले आह !

बेटा तुम्हारा विवाह।


घर मेरा बट गया खुशीयां भी सारी चली गई।

दुखते पांवों से मां तेरी घर का काम कर रही।

तेरी बहनों के आने पर, मुंह वो चिढ़ाती थी।

लड़ाई का करके बहाना अपने कमरे से न बाहर आती थी।


ऐसा किया.... बेटा तुम्हारा विवाह।

अब सोचता हूँ तो......

दिल से निकले आह !

बेटा तुम्हारा विवाह।


अपने घर के हाल को हम सब छुपाते थे।

वो हाल हमारे घर का फोन पर बताती थी।

मुझ पर हो रहा है जुर्म .....वो फेसबुक पर बताती थी।


ऐसा किया.... बेटा तुम्हारा विवाह।

अब सोचता हूँ तो......

दिल से निकले आह !

बेटा तुम्हारा विवाह।


तुम पर जो हुआ जुर्म ....तेरी खामोशी को समझता हूँ।

हमारी क्या गलती रही....... कुछ नहीं समझता हूँ।

संस्कारों में क्या कमी रही सोच नही पाता हूँ।

बुढापा हमारा और तुम्हारी ही चिंता।

तुम्हारा विवाह कर परिवार के सुंदर सपने को सींचा।


बिखर गए हम सब वो अकेली सबको अकेला कर खुश हैं।

जिस के लिए लाएं थे..... वो उससे ही नाखुश है।


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