पता ही नहीं चला
पता ही नहीं चला
दिल के हिस्सा होने से लेकर,
ज़िंदगी का किस्सा कब बन गए पता ही नहीं चला।
ज़िंदगी के अहम इंसान होने से लेकर,
कब वह सब ज़िंदगी के वहम सपने बन गए पता ही नहीं चला।
उसके साथ बिताये पल में रहन से लेकर,
कब वही बिताये पल मेरा सेहन कब बन गए पता ही नहीं चला।
हालात भी सही थे उसके वफ़ा से, उसके सादगी से, लेकर,
बेवफाई को सहना भी कब आदत बन गयी उसका पता ही नहीं चला।
