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Janvi Choudhury

Tragedy Classics

4.7  

Janvi Choudhury

Tragedy Classics

किस्मत का लिखा

किस्मत का लिखा

1 min
260


जा रहे थे कोई अपने बहन की शादी में,

तो कोई अपने भाई से मिलने...


कोई अपने घर लौट रहा था,

तो कहीं कोई परिवार घूमने बहार जा रहा था...


कहीं माँ अपने बच्चों से मिलने जा रही थी,

तो कहीं किसी का पिता घर पर बैठकर

अपनी बच्चों की राह देख रहा था...


कोई बूढ़े माँ -बाप अपने परिवार की किलकारीयों को सुन ने के

इंतज़ार में बहार प्रतीक्षा कर रहे थे,

तो कहीं कोई दोस्त अपने दोस्त से,

अपने पचाहने वालों से मिलने जा रहा था...


कभी नहीं सोचा था की एक रेल हादसे के शिकार होंगे हम,

और लाशें बनके जला दिए जायेंगे हम...


कोई हमे पहचान नहीं पा रहा है,

तो कोई हमे ढूंढ नहीं पा रहा है...


लाशें ख़त्म नहीं हो रही है,

और आंसू की धरा भी बहती जा रही है...


कहीं कोई अस्पताल में अपनी आखरी सांस के लिए जंग लड़ रहा है,

तो कहीं कफ़न भी कम पड़ रहे है...


खून से लथपथ टुकड़े -टुकड़े हो कर हम पड़े हुए है,

अब न जाने हमारी परिवार की क्या दशा हो रही होगी।


कोई कितना भी पैसा फेंक दे,

गयी जान को लौटाके ला नहीं सकता है,

न ही सहारा दे सकता है,

ये चीखें और आज का ये दिन,

एक काला दिन होके इतिहास में तब्दील हो गया है...


परिस्थिति कभी भी बदल सकता है,

मगर नियति का लिखा कोई नहीं बदल सकता है।


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