शिव शक्ति
शिव शक्ति


उसके आँखों में,
मैं मेरे नाम के अश्क़ को, देखती हूँ...
उसके आँखों में,
छुपी उस नमी को...
मैं अपने काजल के पलकों को भीगा के, तुझे सुकून देना चाहती हूँ।
उसके मुस्कुराहट में,
मैं हमारी ख़ुशी को, देखती हूँ...
उसके मुस्कुराहट के,
पीछे उदास चेहरे को भी...
मैं अपने प्यार के रंगों से, भरना चाहती हूँ।
उसके हाथों में,
मैं मेरे नाम की, मेहंदी देखना चाहती हूँ...
उसके हाथों में लकीरें हमारी,
भले ही धुंधला सा हो...
मगर किस्मत की लकीरों को, उस तकदीर से मैं चुराना चाहती हूँ।
उसके रूह में,
मैं उस ठंडी हवा की झोंके की तरह,
उसे अपना जुनून बनाना चाहती हूँ...
उसके रूह में कभी भी कोई भी हलचल हो,
मैं उसको हमारे इश्क़ की दास्तान सुनाना चाहती हूँ।
उसके सादापन में,
मैं ऐसी खो गयी हूँ की,
हमारे क़ुरबत को और भी करीब से महसूस करना चाहती हूँ...
उसके सादापन में अपने आपको कुछ यूँ ढाल ली के,
अब हर शब्द में उसके नज़ाकत को एहसास करने का बहाना ढूंढ़ना चाहती हूँ।
उसके ख्वाब में,
मैं हमारा एक छोटा सा आशियाना बसाना चाहती हूँ...
उसके ख्वाब में,
मैं हूँ दरिया और वह है साहिल, एक साथ समाने के लिए मयस्सर जुस्तजू ही सही,
मगर मेरे
लिए मेरी इनायत भी तू है, और शिकायत भी तू है, तेरे साथ में, में अपनी किस्मत हर बार लिखना चाहती हूँ।
उसके रिवायत में,
मैं अपने आपको उसमें समाना चाहती हूँ...
उसके रिवायत में,
कभी होली तो कभी दीवाली,
हर रिवायत को, में तेरे साथ मनाना चाहती हूँ।
उसके रक़्स में,
मैं खुद झुमना चाहती हूँ...
उसके रक़्स में,
कुछ यूँ गुनगुनाने लगती हूँ के,
कभी योगन तो कभी दीवानी बन जाती हूँ।
उसके सेहर में,
मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी आफरीन होके, उसके साथ चलना चाहती हूँ...
उसके सेहर में आफ़ताब वह है और उसकी नूर सी चाँद हूँ में,
साथ मंदिर भी जाए, साथ दिए भी जलाये और शिवरात्रि का व्रत भी एक साथ खोले ,
बस तमन्ना है की, सातों सोमवार महादेव की मंदिर जाके हमारे नाम की फूल चढ़ाना चाहती हूँ।
उसके ग़ज़ल में,
मैं हूँ धुन, मैं हूँ संगीत, मैं ही सातों सुर बनना चाहती हूँ...
उसके ग़ज़ल में, उसके डायरी में,
मैं वह ज़मीं धूल भी नहीं या मुरझायी हुई फूल भी नहीं,
मैं उसके कोरे कागज़ में लिखी उसके प्रिय कलम की स्याही बनना चाहती हूँ।
उसके लब में,
मैं वह शांत सी चुप्पी नहीं बल्कि वह खामोशियों की आवाज़ बनना चाहती हूँ...
उसके लब पर, सिर्फ़ मेरे नाम की कविता ही नहीं,
बल्कि उसके लिखी एक-एक शब्द की, रूह की आवाज़ बनना चाहती हूँ।
~ जानभी चौधुरी