कामयाबी से जलने वाले - ये समाज
कामयाबी से जलने वाले - ये समाज
समाज का बिछाया पुराना मायाजाल,
जो कामयाब है उनके लिए समाज रचाता है नयी चाल।
फूल बनो तो भी बाग से तोड़ेंगे,
कांटे बनो तो भी इन्हें चुभेंगे।
नयी चालों और छल से, ये पराजित का मार्ग ढूंढ़ते हैं,
मगर हम भी हैं शेरनी, इनकी बातों का मुंह तोड़ जवाब देना जानते हैं।
ये दुनिया हिंसा और मोह के मुखौटे का है,
मगर जीत हमेशा से सच्चाई और कर्म की होती आ रही है।
कितने बिछा लो जाल, अब नहीं फंसने वाली है हमारी बेटियां,
ओछेपन दिखाने वाले, वक़्त तेरा भी आएगा और तब तू ईश्वर से माफ़ी मांगता फिरेगा।
कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं,
इंसानियत से बड़ा और कोई सम्मान नहीं।
कर्म की बातें समाज क्या समझेगा जिसके ज़ेहन में गंदगी की बासना हो,
जहाँ कर्म और इंसानियत नहीं वहाँ हिसाब भी कर्म, वक़्त और ईश्वर ही करते हैं।
झूठ का भेद कब तक छुपेगा, आखिर जगत ईश्वर की है तो माया भी उसी का होगा,
और सच्चाई एक न एक दिन गंभीर रूप लेकर फिर बहार आएगा।
लड़की, देवी है, बुरा करने से पहले अपने अंत का सोच लिया करो समाज वालों,
भूखी शेरनी की दहाड़ भी एक शेर से काफ़ी ज़्यादा ज़ोर होती है।
कला का अनादर वही करते हैं, जिन्हें कला को जान ने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है,
और कीचड़ से कमल बनके वही खिलते हैं, जो कमल सा कीचड़ में रह के, भी गर्व करना जानते नहीं है।
ये समाज कीचड़ समान है,
कंकड़ फेंको तो कीचड़ उड़ के फेंकने वाले के ऊपर ही आ गिरता है।
सिर्फ़ पैदान समझने की भूल न करना,
हम राग है तो जलती चिंगारी में धर्म की आग भी है।
थक हार के मत बैठ तू,
हौसला अगर बुलंद हो तो, आसमान भी कम है गर्दिश लगाने को।
सतर्क रहो बहनों, ये है समाज का बिछाया पुराना मायाजाल,
जो
कामयाब है उनके लिए समाज रचाता है नयी चाल।
