वो अँधेरी गलियाँ--
वो अँधेरी गलियाँ--
ये ज़िंदगी विरानियों में, उजर गई।
उस अँधेरी गली से ही, गुजर गई।
उम्र मिली, मग़र ताउम्र मिली नहीं।
क्यूँ यह उम्र, राहों में ही गुज़र गई।
गिला नहीं, जो ख़्याल में ज़िंदा हैं।
तसव्वुर ही सही, साँस गुजर गई।
दिया तो बहुत! ख़्याल उसका है।
जन्म दे, फ़र्ज़ की बात गुजर गई।
नीरस बदल दे, जो तस्वीर इनकी।
क्यों इसी सोच में, रात गुजर गई।
