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Minal Aggarwal

Tragedy

4  

Minal Aggarwal

Tragedy

जीवन के उस आखिरी क्षण में

जीवन के उस आखिरी क्षण में

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जो आयेगा 

वह एक न एक दिन तो 

इस संसार से 

अपने चाहने वालों को 

पीछे छोड़ता 

उनसे हमेशा के लिए 

जुदा होता 

विदाई लेता

किसी अनचाही दिशा में 

बिना कुछ कहे सुने 

बिना किसी शिकायत के 

बिना किसी भेदभाव के 

एकाएक सहसा अनायास ही 

किसी दूसरे संसार के लिए 

विदा हो जायेगा 

यह सत्य सबको ज्ञात है लेकिन 

इसे स्वीकार करने का दिल नहीं 

चाहता 

दिल में यही तो 

एकमात्र ख्वाहिश होती है 

दिल से प्यार करने वालों के 

दिलों में कि 

अपनों का साथ 

ज्यादा से ज्यादा समय 

एक लंबे समय तक 

बना रहे 

वह जिंदा रहें 

स्वस्थ रहें 

हमारे बीच बने रहें

हंसते खेलते रहें

एक फूल से खिलकर 

हमेशा मुस्कुराते रहें 

हमें सूरज के उजाले सा 

प्रकाश देते रहें 

हमारे जीवन को रोशनी से 

भरते रहें

हमारे प्रिय गण

हमारे शुभचिंतक 

हमारे संगी साथी 

हमारे साथ जीवित रहें 

लेकिन जो दिल चाहे 

ऐसा हमेशा क्या होता है 

कितनी भी चेष्टा कर लो 

पूरे मनोयोग से किसी की सेवा कर लो 

मन ही मन लाख प्रभु की उपासना 

कर लो 

तन से, मन से, धन से 

कितनी भी सहायता कर लो 

अपनी जान तक किसी पर 

न्योछावर कर दो पर 

जिसे जिस पल यह शरीर 

छोड़ना है 

वह छोड़ेगा 

उसकी मौत आपको 

आश्चर्यचकित कर देगी 

भयभीत कर देगी 

रुला देगी लेकिन 

वह स्थाई रूप से अब 

आपको छोड़कर 

हमेशा के लिए किसी 

अंजाने स्थान पर चला 

जायेगा 

मैंने भी देखा 

अपनों का पल पल तड़पना 

मरना 

लाख कोशिशों के बावजूद 

जब हम किसी का उपचार नहीं 

कर पाते 

उसे ठीक नहीं कर पाते 

उसे स्वस्थ नहीं कर पाते तो 

कितनी शर्मिंदगी होती है 

कितनी विवशता 

कितना असहाय महसूस करते हैं 

हमारे हाथ से तो 

कुछ कल्याण 

किसी का भला 

किसी को जीवनदान नहीं 

मिल पा रहा 

हमारे हाथ से तो 

हमारा सब कुछ 

रेत की तरह फिसला

चला जा रहा है 

हम तो ठगे से 

तो भी जिंदा रह जायेंगे 

जो हमेशा के लिए 

जा रहा है 

सब कुछ पीछे छोड़ता 

अपनी राह

अपनी मंजिल 

अपना घरौंदा 

अपना सामान 

अपने ख्वाब 

जरा कोई उसके दिल में 

झांककर तो देखे कि 

अपने जीवन के उस 

आखिरी क्षण में 

अपने सपनों के महल को 

एक झटके में 

उसके टूटे दिल की तरह 

टूटकर बिखरता देख 

उसे कैसा महसूस हो रहा 

होता होगा 

यह असहनीय है 

अकल्पनीय है 

आधार शिलाओं को हिलाने 

वाला एक भ्रम नहीं बल्कि 

सच है लेकिन 

सब कुछ जानते हुए 

समझते हुए 

कुछ भी न समझने की कला 

को ही तो 

खुद को जिंदा रखने के लिए 

जिंदगी कहते हैं।


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