मां की तड़प
मां की तड़प
वह प्यारी है, राजदुलारी है,
सबकी जान है बसती उसमें,
वह सब को जान से प्यारी है।
पापा की लाडो, मां की गुड़िया
सबके लिए उसकी मुस्कान जैसे हो
कोई जादू की पुड़िया
पापा के आने पर हाथों में पानी का ग्लास ले,
झटपट दौड़ जाती है,
छोटे से बड़े घर के कार्यों में
वह मां का हाथ बटाती है।
भाई के नटखट बातों पर इठलाती, इतराती है,
शाम ढलते ही दादा-दादी का सिर हाथों से सहलाती है।
सुबह सुबह जब स्कूल यूनिफॉर्म में
वह स्कूल जाती है,
माँ दूर तलक अपनी रानी बिटिया
को एकटक निहारती है
शाम को घर आते ही मां उसे अपने पास बिठाती है
तुम से ही सम्मान हमारा हम में गुरूर तुम्हीं से आती है
कुछ शर्माती, घबराती, फिर दृढ़ निश्चय कर वह बोली
आंच ना आने दूंगी आन -मान पर,
खुशियों से भर दूंगी माँ तेरी झोली
बिटिया की सुन इतनी बात माँ ने,
उसका माथा चूम लिया
झांक उसकी आंखों में जैसे,
सारा जहां ही घूम लिया
इनकी खुशियों को किसने नजर लगाया
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विधाता ने इन पर मुसीबत कैसा ढाया
एक शाम जब घर पर अंजाना कॉल आया
बातें सुन उस फोन की जैसे कोहराम हो घर में छाया
बेटी की पथराई आंखों में दर्द भी बिलख रहा
मां बाप के सीने में एक ज्वाला जैसे सुलग रहा
वह दरिंदा इज्जत से, सम्मान से, अपना घर बसाएगा
निर्दोष मेरे लाडली को,
समाज गालियां, ताने, इल्जाम दे सताएगा
आंखों से बहते अंगारों को, आंखों में समेटकर
पहुंच गई मां थाने में, चाकू अपनी साल में लपेट कर
साहब एक बार मुझे उस शख्स से मिला दीजिए
मेरी फुलवारी को जिसने रौंदा,
उसका उसे कुछ तो सिला दीजिए
मां की जेहन में जैसे, चंडी का रूप आ गया
चाकू निकालकर मारा राक्षस को,
सबकी आंखों पर अंधेरा छा गया
कुछ भी अंजाम हो मेरा मुझे नहीं है अब कोई गम
हर कुकर्मी का हश्र यही हो
ना दर्द सहो ले आंखें नम
जिस दिन नारी को अपनी शक्ति का होगा ज्ञान
धूल चटा देगी पापियों को,
जहां में बढ़ाएगी अपना मान।