एक दर्द ऐसा भी
एक दर्द ऐसा भी
मेरी दीवानगी की इंतहा, अब तू ये देखेगा,
तुझे खुद में बसाकर मैं खुद को खाक कर लूंगी
जज्बातों की जो ज्वाला सीने में जल रही है
सभी अरमां उसमें जलाकर राख कर लूंगी
तूने तो सजा रखे हैं अपनी सेज फूलों से
मैंने काँटो को अपने सोने का गलीचा बना डाला
तेरी रातें गुजरती है रंगीन लम्हों में लिपटी
मेरी रातें सिसकती हैं करवटों में हुई सिमटी,
और हाँ,अपने ही हाथों से अपनी खुशियों का,
कत्लेआम कर डाला
मेरी तो शामें नहीं दिन भी काली रात जैसे हैं,
कभी फुर्सत हो तो रुख कर एक बार इधर का भी,
आके एक बार देख ले मेरे हालात कैसे हैं।
सोच कर मैं अपना अंजाम डर से कांप जाती हूं,
मुखौटे में छिपे कितने बेरहम आप जैसे हैं
तूने एक रोज बोला था हमारा साथ उम्र भर का है,
मुझे मालूम ना था कि मेरी उम्र ही है इतनी सी,
तेरी मासूमियत से ठगे हम खुद ब खुद जाना
वो समय की मांग की थी तेरी, है बस बात इतनी सी
तेरी दिल्लगी को हम दिल से यूं लगा बैठे,
सात जन्मों के हम हैं साथी ऐसा ख्वाब सजा बैठे।
मैं भी एक रोज ऐसे तन्हा तुझको छोड़ जाऊंगी,
पुकार लाख तू मुझको न फिर वापस मैं आऊंगी,
अकेले में तेरी धड़कन जो कभी मेरा नाम लेगी,
तेरी हर एक धड़कन में वही मैं गुनगुनाऊंगी ।
आज जो हाल है मेरा कहीं तेरा ना होए कल,
खुदा से दुआ में तेरी मुस्कान मांगूंगी,
अश्क निकलेंगे एक दिन आंखों से तेरे,
मुझको याद करके
तेरी हर एक आंसू में मैं पूरी भीग जाऊंगी
मेरे मन के समंदर में उमड़ते सैलाब से एक दिन,
तेरा भी होगा सामना,
वह मुलाकात देखूंगी
रहूंगी मैं नहीं तब तक तेरे साथ वो मितवा,
तेरी आंखों में मैं तेरे सारे जज्बात देखूंगी।।