सुकून भरा पल
सुकून भरा पल
ढूंढे मेरा मन वो सुकून भरा पल
वह दादी की थपकी और मां की लोरी में,
भीगा हुआ आंचल ।
ढूंढे मेरा मन वो सुकून भरा पल।
वह मां की पुकार में ,
बच्चों की गुहार में,
वह कागज की नाव का चलना ,
बारिश की फुहार में ,
वह त्योहारों के मेल में ,
गुड्डे -गुड़ियों के खेल में ,
वह यारों की छुक छुक करती,
टेढ़ी-मेढ़ी सी रेल में ,
आज और कल में बीता जाए हर पल ।
ढूंढे मेरा मन वो सुकून भरा पल।
वह पहली बारिश की सोंधी मिट्टी की गम- गम,
वह धान और दूब हुई ,ओंस से नम- नम ,
वह पनघट की नाव में ,
वह पीपल की छांव में ,
छोटे छोटे हाथों से बने ,
मिट्टी के घर में
वह किताबों में रखें ,
टूटे हुए मोर के पर में ,
बैलों की घंटी और खेतों में हल।
ढूंढे मेरा मन वो, सुकून भरा पल ।
सरसराती हवा के ,
मदमस्त करते झकोर में ,
वह चिड़ियाँ की चह-चह में,
चंदा और चकोर में ,
उजाले में अंधियारें में,
टिम- टिम करते तारे में ,
झर -झर करता यह झरने का जल।
ढूंढे मेरा मन वो ,सुकून भरा पल ।
कुछ सूरज की धूप में ,
कुछ अपनों के रूप में,
कुछ रंग -बिरंगे फूलों की महक में,
कुछ आंगन की तुलसी ,
और चिड़ियों की चहक में ,
चल मेरे मन उस जहां में फिर चल ।
ढूंढे मेरा मन वो सुकून भरा पल।
वो दादी की थपकी,
और माँ की लोरी में भीगा हुआ आँचल
ढूंढे मेरा मन वो सुकून भर पल।।।
