आत्मा की शुद्धि
आत्मा की शुद्धि
आत्मा जो अलग हुई,
माटी हुआ शरीरI
जीव से निर्जीव हुआ, रुक गई सांसों की डोर I
"अब" कहीं नहीं रही उसके लिए "ठोर"I
कोई साथ नहीं,
कुछ भी हाथ नहीं I
छूटे हमसफ़र और हमराही,
वादे -इरादे सब छूटे,
दोस्त -सखा भी तो रूठे,
आज़ लग रहे सब झूठे I
चार कन्धों ने ढोकर ,
शमशान की राह दिखाई I
निर्जीव काया को ,
अपनों ने आग लगाई I
मुर्दों संग "मुर्दा" जल रहा,
मातम में परिजन बिलख रहा I
शोर इतना कि, कुछ सुनाई नहीं देता,
अभी कोई "उनकी" सुनने वाला भी तो नहीं होता I
झुण्ड बना बैठे हैं , शोक संतप्त लोग I
कोई याद कर रहा,
शरीर जिसका जल रहा I
कहीं हो रही घ्यान की बातें,
आत्मा की शुद्धि और शरीर की बातें I
जैसे जैसे हो रहा शरीर भष्म,
ख़त्म होती यादों की रस्म I
लाश के पूरा जलते ही,
होड़ सी मची I
अपने शरीर को साफ करने की,
मंदिर जाकर पाक-पवित्र होने की I
कितनी जल्दी भूल गए,
उस आत्मा को
जो छोड़कर जा चुकी
मोह माया के जाल को I
और भूलते ही हो गई
हमारी "आत्मा की शुद्धि" I