STORYMIRROR

Rajendra Jat

Classics Fantasy Inspirational

4  

Rajendra Jat

Classics Fantasy Inspirational

एक चाय और चलेगी

एक चाय और चलेगी

2 mins
430

जब कोई चाय के लिए पूछता है मुझे,

"मैं" मना नहीं करता उसे.

अमृत का स्वाद भी नहीं चाय में,

ऐसा भी नहीं कि पी न जा सके सराय में.

फिर भी मैं मना नहीं करता उसे.


"चाय पियोगे" पूछता है जब कोई तुमसे,

चाहता है साथ बस कुछ पलों का तुमसे.

कुछ देर तुम पास उसके बैठो,

और बातों से अपनी दूरियों को पाटो.


बनाना पड़ता है "चाय को" रिश्तों की तरह,

और संभालना भी होता है अपनों की तरह.

कुछ समय जरूर लगता है चाय बनाने में,

पर इतना भी नहीं लगता, 

जितना लगता है अपने ही किसी रूठे को मनाने में.


मिलाते हैं प्यार की अदरक और श्रद्धा की तुलसी चाय में,

तभी तो आती गर्माहट बरसों से मुरझाये रिश्तों में.

छान लो अब चाय को और मिटा दो कड़वाहट सारी,

है चाय की ये मीठी चुस्की सारे ग़मों पर भारी.


उम्मीद है अब तुम भी कहोगे ... एक चाय और चलेगी ..


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics