"हिंदी" पहले प्यार का अहसास
"हिंदी" पहले प्यार का अहसास
कलम जब भी हाथ में उठाता हूं,
मन की भावनाओं को कागज़ पर उकेरता हूं,
स्वयं को स्वतः "हिंदी" की डगर पर पाता हूं।।
कुछ तो बात है इसमें, कुछ तो स्वाद है इसमें,
और कुछ तो मिठास भी है इसमें,
तभी तो
बचपन का प्रथम शब्द बनती "हिंदी"
मां के प्रेम की छाया "हिंदी"
पहले प्यार का अहसास "हिंदी"
दिल की धड़कन और हिंदुस्तान की आवाज है हिंदी।
बहुत कुछ समाया है "हिंदी" में
एकता का अटूट धागा इसमें,
राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति समाहित इसमें,
सरलता, सौम्यता और सहजता इसमें,
नर -नारी का स्वाभिमान इसमें,
भगवान की आराधना इसमें,
किसान और जवान का अभिमान इसमें,
सोए वीरों को जगा दे ऐसा गुमान इसमें,
वैघानिकों का दृष्टिकोण इसमें,
भारत की गौरव गाथा इसमें,
भारतीयता की पहचान इसमें।
वर्तमान परिपेक्ष में:
अनेक खूबियों को अपने में समेटे,
फिर भी "अपनों" की उदासीनता को झेलती,
कभी होती "कलंकित" तो कभी हुई छवि धूमिल
आधुनिकता के दौर में, हो रही सबसे अपमानित,
अस्मिता अपनी बचा रही, करके हमें सम्मानित।
आओ मिलकर लें हम संकल्प,
बच्चों की शिक्षा और संस्कार का,
समाज में व्यवहार का,
ऑफिस के पत्राचार का,
स्वयं के विचारों का,
वर्ष के हर वार का, "हिंदी" ही बने केवल विकल्प।
माना आज अंधकार है,
माना आज मन में विकार है,
माना आज डगमगाते हमारे संस्कार है,
माना आज अंग्रेजी का प्रचार है,
परंतु
रोशनी को कौन रोक पाया है?
संस्कारों को कौन पथ से डिगा पाया है?
संस्कृति को क्या कोई हरा पाया है?
इसलिए
प्रतिस्पर्द्धा में कुंठित और विचलित होने का समय नहीं,
"हिंदी" के जनाधार और पवित्रता पर शक नहीं।
वो गौरव पल फिर से आएगा,
मातृभाषा को "राजभाषा" से ऊंचा उठाकर
हिंद की "राष्ट्रभाषा" से नवाजा जाएगा
और
जब विश्वपटल पर "हिंदी" को पुनः पहचाना जायेगा।
