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Rajendra Jat

Action Inspirational

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Rajendra Jat

Action Inspirational

पाषाण होती देह

पाषाण होती देह

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पाषाण हो रही देह और आत्मा सिसक रही।

रिश्तों की आभा, अर्थहीन हो "अर्थ" को खोज रही।

मृत विचारों के बंधन में, आज "आज़ादी" गुलाम हो रही।


"उपचार" कर रहा इशारा, अभी जिन्दा है मानवता।

लेकिन उसे खबर नहीं, कि पल-पल मानवता शर्मसार हो रही।

मृत विचारों के बंधन में, आज "आज़ादी" गुलाम हो रही। 


सजाना था रंगों से, पर बेरंग जिंदगी हो रही।

स्वार्थसिद्धि में पाषाण देह हो रही।

मृत विचारों के बंधन में, आज "आज़ादी" गुलाम हो रही।



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