बदलते समय के साथ बदलते रिश्तों के बारे में एक कविता...। बदलते समय के साथ बदलते रिश्तों के बारे में एक कविता...।
रिश्तों की इस फसल पे निर्भर होती जीवन की झाँकी। रिश्तों की इस फसल पे निर्भर होती जीवन की झाँकी।
देर से ही सही, सुनो इश्क़ करोगे क्या ? देर से ही सही, सुनो इश्क़ करोगे क्या ?
लिखता कुछ हूँ करता कुछ हूँ अपना भी ये व्यवहार हो गया लिखता कुछ हूँ करता कुछ हूँ अपना भी ये व्यवहार हो गया
ईमानदारी से निभाओ रिश्ते सभी, भरोसा न तोड़ो एक दूजे का कभी I ईमानदारी से निभाओ रिश्ते सभी, भरोसा न तोड़ो एक दूजे का कभी I
बड़ा होना भी कहाँ आसान है खुद को रोज़ गलाना होता है। बड़ा होना भी कहाँ आसान है खुद को रोज़ गलाना होता है।