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Alka Nigam

Abstract Inspirational

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Alka Nigam

Abstract Inspirational

रिश्तों की फसल

रिश्तों की फसल

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थोड़ा थोड़ा करके

रिश्तों को तुम रोपो।

किसी में गहराई है ज़रूरी

किसी को उथली मिट्टी।


किसी को बस बौछार है काफी

किसी को मिट्टी गीली।

धूप की ख़्वाहिश किसी को हर दम

किसी को छाया भाती।


किसी में फल आते हैं जल्दी

आस कहीं मिट जाती।

कभी उखाड़ के पौध कोई

दूजे घर में रोपी जाती।


कुछ रिश्ते कलमी होते हैं

कुछ बीज से जन्म हैं लेते।

पर गुलज़ार वही हैं होते

जो प्यार से सींचे जाते।


कभी टहनी उलझ हैं जाती इनकी

कभी दीमक शक़ की लग जाती।

किसी के आँगन की कलियाँ

किसी और का घर महकाती।


रिश्तों की इस फसल पे निर्भर

होती जीवन की झाँकी।


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