कर्म
कर्म
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कर्मों का फल
चुकाना ही पड़ता है
अच्छा या बुरा
भुगतना ही पड़ता है
कर्मों का ही खेल है सारा
स्वयं भगवान को भी
वनवास काटना पड़ता है
फिर मानव कैसे बच सकता है
जन्म मरण का चक्र तय इसी से है
फिर नियम तो कुदरत को पालन करना पडता है