कुछ ख़्वाब झुके से हैं
कुछ ख़्वाब झुके से हैं
किसने कहा,
किससे कहा
क्यों कहा?
जो कहा!
दर्द अपलक देखता रहा उसे।
पर वो !
बेदर्द-सा टुकड़ा इस दिल का!
सारे आँसु पी गया।
राहें ताकती रहीं ,
इंतज़ार चलता रहा।
बेसबब लब हिले।
कुछ टूटा-सा सामान ,
इस दिल को,
अब भी आवाज़ दे रहा है।
लौट चल!
वक़्त अभी थोड़ा बचा है।
पर कदम उसके!
कुछ रुके से हैं।
सियाही आँखों में,
कुछ ख़्वाब झुके से हैं।