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नसीब

नसीब

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कुछ निवाले और सर पर साया,

इतना भी बड़ी छतरी वाला न दे पाया

कुछ को है नसीब सारी दुनिया की नियामतें,

चलो कोई बात नहीं साँसों का तोहफा तो हमने भी पाया

भेज दिया धरती पर यूँ तरसने के लिए,

क्या तुझको हम बच्चों पर थोड़ा भी रहम न आया

मगर शिद्दत भी कुछ ऐसी दे दी संग ऊपर वाले ने,

कैसा भी हो तूफान कश्ती को डुबो न पाया

न मिला मखमली बिस्तर तो कोई ग़म नही,

उम्मीद का बिछौना नरम बिछा सो गए

नींद मेहरबान है हम पर कि पलकों पर बैठी है,

झूठी ही सही रोटी पेट भर खा कर सो गए

तू तरस न खा ऐ ज़माने इस हाल पर मेरे,

धूप में तप कर हौसले और रवाँ हो गए

हम जैसे लिख जाते हैं इतिहास भी कभी,

देख पानी के कुछ कतरे आज बरसता आसमां हो गए।


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