मौसम
मौसम
मिलते थे गले सबसे, अब वो मौसम बदल गया है
कोई हिंदी कोई मुसलमान तो कोई बेबस सा बन गया है
सड़क पे पड़ा रंग वो खून हो गया
गाँधी का बूत खड़ा, सारा बाज़ार जल गया है
चाँद पर परचम, कि मंज़र बदल गया
था चोला जो फ़क़ीर का सियासत में ढल गया है
दुश्मन की क्या मजाल जो बिगाड़ ले कुछ अपना
देश का दिल था जो, सीमा में बदल गया है।