शहीद
शहीद
बंद कमरा दिखा खिड़कियाँ रो पड़ी
कान सूने दिखे बालियाँ रो पड़ी
लौट कर आया जब शव तिरंगे में तो
हाथ की वो सभी चूड़ियाँ रो पड़ी
कौन लाडो हमें अब कहेगा यहाँ
सोचते सोचते बेटियाँ रो पड़ी
एक कोने में जब रो रही थी बहन
इक कलाई दिखी राखियाँ रो पड़ी
खेलते थे कभी रंग से फाग पर
जब जनाज़ा उठा भाभियाँ रो पड़ी
भीगी पलकें न थी दिल में तो दर्द था
हाल माँ का था वो अस्थियाँ रो पड़ी
देख संजय पिता का वो उजड़ा चमन
बाग के संग में आँधियाँ रो पड़ी
