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Sanjay Jain

Others

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Sanjay Jain

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रात भर

रात भर

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रखी थी खुली खिड़कियाँ रात भर

खनकती रही चूड़ियाँ रात भर


तुम्हारा तस्सवुर निगाहों में था

कड़कती रही बिजलियाँ रात भर


कहा था यही ख़्वाब में आऊँगी

जगाती रही हिचकियाँ रात भर


निगाहों निगाहों में क्या कह दिया

बहकती रही बालियाँ रात भर

                        

डूबा क्या दिए झील में पाँव बस

तड़पती रही मछलियाँ रात भर


हवाओं ने पैगाम तेरा दिया

मैं पढ़ता रहा चिट्ठियाँ रात भर


तुम्हें याद मैनें किया दो घड़ी

मचलती रही सिसकियाँ रात भर


तुम्हारा बदन बस छुआ था फकत

सुलगती रही उंगलियाँ रात भर



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