रिश्ते
रिश्ते
कभी मैं नाव कागज़ की न बारिश में चला पाया
कभी भी रहनुमा कोई न अब तक मैं बना पाय
अना मैं बेच देता गर महल मैं भी बना लेता
मगर अपने उसूलों से नहीं इक घर बना पाया
लगी थी दौड़ दुनिया में बहुत पैसा कमाने की
मुझे था शौक रिश्तों का फ़क़त रिश्ते कमा पाया
बुझा दी आग घर की तो ज़रा सी देर में मैंने
लगी जब आग दिल में तो नहीं उसको बुझा पाया
कभी पूछा किसी ने तो हमेशा सच कहा मैंने
मिली उसकी सज़ा ऐसी जिसे देखा खफा पाया।
