ख़त
ख़त
हमारे ख़त जला कर भी न तुमको चैन आएगा
भले ही देख लेना तुम न मंज़र कोई भाएगा
हमारी याद भी तुमको हमेशा ही सताएगी
ग़ज़ल जब भी कभी कोई कहीं तुम को सुनाएगा
तुम्हारी ज़ुल्फ को तुमसे शिकायत तो सनम होगी
किसी की ज़ुल्फ में गजरा कोई जब भी लगाएगा
मेरे आँसू तुम्हें भी तो सनम हँसने नहीं देंगे
गिला होगा तुम्हें खुद से कोई जब मुस्कुराएगा
कभी सज-धज के आईना अगर तुम देख लोगी तो
ज़रा सी देर में काजल तुम्हारा फैल जाएगा
तुम्हारी आँख से आँसू निकल आए न तो कहना
किसी इक ख़ास शब में जब कोई घूँघट उठाएगा
कभी टूटा हुआ कोई खिलौना जब भी देखोगी
यक़ीनन उस समय तुम को ये संजय याद आएगा

