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Sanjay Jain

Abstract

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Sanjay Jain

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शीशा ए दिल

शीशा ए दिल

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कभी शीशा ए दिल को यूँ सनम तोड़ा नहीं करते

बुला कर बज़्म में अपनी कभी तन्हा नहीं करते


नहीं चलना अगर था साथ तो बेशक नहीं चलते

बना कर हमसफ़र यूँ राह में छोड़ा नहीं करते


तुम्हारा ग़म सहेजेंगे तुम्हारे प्यार की मानिंद

हुई है क्या खता हमसे कभी सोचा नहीं करते


तुम्हारा फूल सा चेहरा कहीं मुरझा नहीं जाए

यही बस सोचकर अब हम कभी रोया नहीं करते


अगर है वो तुम्हारा तो वो खुद ही लौट आएगा

ज़बरदस्ती किसी का रास्ता रोका नहीं करते


न जाने कौन सी उसकी रही होगी वो मजबूरी

किसी से बेवफ़ाई का सबब पूछा नहीं करते


किसी के ज़ख़्म पर मरहम लगाने कौन आता है

किसी का बेवजह यूँ रास्ता देखा नहीं करते


अगर कोई शिकायत थी गिला करते कभी मुझसे

ज़रा सी बात पर संजय कभी रूठा नहीं करते।



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