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Řàvîťã Čhâühâñ

Tragedy

3  

Řàvîťã Čhâühâñ

Tragedy

माँ होने का फ़र्ज

माँ होने का फ़र्ज

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शिशु ने जब जन्म लिया जग में,

सब देख बहुत हैरान हुए l 

हु ब हु वही आँखें चेहरा,

हु ब हु उसी के कान हुए ll 


जिसने नोचा था बदन कभी,

उस अबला का मौका पाकर l 

काँपी थी जिससे रूह कभी,

उस अबला की धोखा खाकर ll 


रोई थी खून के आँसू,

जब छलनी जिस्म हुआ उसका ll 

इसमे क्या है दोष भला,

दुनिया में आये उस शिशु का ll 


देख शक्ल उस बालक की,

वह याद दरिंदा आता था l 

उसके मन को पल पल , 

उसका चेहरा तड़पाता था ll 


जिस पल भी याद करती ,

प्रसव पीड़ा वो असहनीय l 

पल पल कितनी मौत मरती, 

स्तिथि होती बड़ी दयनीय ll 


क्योंकि माँ तो माँ होती है ,

होता उसका धर्म जन्म देना ll 

अपने हर दुख को भूल ,

बच्चों को नव जीवन देना ll 


तन पर मन पर आघात सहे

फिर भी हर फ़र्ज निभायेगी

हो शक्ल दरिंदे की लेकिन

उसको भी दूध पिलायेगी।।



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