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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

व्यर्थ चिंतन

व्यर्थ चिंतन

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व्यर्थ का मत कर तू चिंतन


कर्म करता रह, बस तू जमकर इतना कठोर परिश्रम कर,

हरा-भरा होगा पतझड़-वन

व्यर्थ का चिंतन, जलाता बदन

जो खुद की ख़ुदी में रहते, मगन

वो शोलों को बना देते, शबनम

व्यर्थ चिंतन, प्रगति में है, बंधन

सोचने में मत गंवा, तू वक्त कर्म करने में बहा दे तू,

रक्त निभा तू खुद को दिया, वचन व्यर्थ का मत कर तू चिंतन

लक्ष्य प्राप्ति हेतु तू सज्जन बढ़ाता रह निरंतर तू कदम

ऐसी लगा ले, खुद में लगन लाख शूलों में खिले सुमन

अपने कर्म में रहे तू मगन

भूल जाएगा तू व्यर्थ चिंतन कितना भी क्यों न कट जाए?

खुशबू न छोड़ता कभी चंदन

कितना भी दुख क्यों ना हो? कितना भी कष्ट क्यों ना हो?

जो लोग होते, यहां पर कुंदन वो लोग सह लेते है, हर तपन

जो वक्त पूर्व, नित करते क्रंदन खुद का वो रोज करते निधन होगा वही,

जैसा किया करम तू छोड़ भी दे, व्यर्थ का चिंतन

नित वर्तमान का कर आलिंगन भूत, भविष्य की त्याग दे,

चुभन सफलता अवश्य बनेगी, दुल्हन तू करता रह, निरंतर अध्ययन



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