STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

4  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

पत्थर

पत्थर

1 min
320

जिसके मन में भरे हुए, हो पत्थर

वो कभी नहीं बन सकता, शंकर


वो हृदय होता है, एक पारस पत्थर

जिसके भीतर-बाह्य न कोई अंतर


आजकल खत्म हुए, स्वच्छ पत्थर

अब रह गये है, गंदे कंकरीले पत्थर


खुद दुःखी, दूसरों को चुभाते नश्तर

ऐसे पत्थरों को फेंक दे, साखी, गटर


जो दे, बीच राह, सबको व्यर्थ ठोकर

उन पत्थरों के टुकड़े कर दे, तू सत्तर


भीतर की आत्मा पर न चढ़ा अस्तर

भीतर तो एकदम, रख स्वच्छ पत्थर


इसमें बसा चमकता रहे, सूर्य बनकर

कर्म करता रह एकदम होकर निडर


वही पत्थर बनता है, यहां पर निर्झर

जो परमार्थ हेतु कर्म करता है, निरंतर


जिसका मन होता पवित्र और सुंदर

वही कंकर अंत में बन जाता, शंकर


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract