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Jyoti Naresh Bhavnani

Tragedy

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Jyoti Naresh Bhavnani

Tragedy

मन का घाव

मन का घाव

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तन पे जब कभी घाव लगता है,

अक्सर ही वो भर जाता है।

पर मन पे जब कोई घाव लगता है,

तो वो कभी नहीं भर पाता है।


अपनों से जब कभी घाव लगता है, 

तो दिल अक्सर ही टूट सा जाता है।

मन को फिर कुछ भी नहीं भाता है,

जीना मुश्किल सा हो जाता है।


दिल तन्हाई को ढूंढने लगता है,

भीड़ में अक्सर मन घबराता है।

मन हरदम उदास सा रहता है,

किसी काम में जी नहीं लगता है।


मन का घाव कभी भरता नहीं है, 

जीना बेहद मुश्किल सा लगता है।

हर बंधन छूटने सा लगता है, 

जब ज़ख्म कोई मन को लगता है।


विश्वास का धागा टूटने सा लगता है,

हर किसी से भरोसा उठ जाता है।

मन का घाव इतना गहरा होता है,

जो ताउम्र ही संग संग रहता है।



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