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Meena Mallavarapu

Tragedy

4  

Meena Mallavarapu

Tragedy

एक ख़याल

एक ख़याल

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आज अचानक हुई अनहोनी -

खिड़की से झांका मैंने तो देखा

एक वृद्धा आई नज़र

फ़ुटपाथ पर बैठी 

देख रही इधर उधर

लग रही थी पढ़ी लिखी  

किसी खाते पीते परिवार की 

उदासी तो न थी चेहरे पर 

मगर मुस्कान भी न थी

कुछ खोई खोई

गमगीन 

कंधे पर था झोला एक

फैशन वाला तो नहीं

मगर धुला हुआ और साफ़ 

मालूम नहीं, था उसमें क्या 

भिखारिन नहीं ,भूखी नहीं

बैठी उस फ़ुटपाथ पर अकेली 

न जाने किस सोच में डूबी-


देख रही ऊपर क

ी खिड़की से मैं

न जाने बंध गया कैसे  

विचारों का तांता

मैं अभिभूत

मंत्रमुग्ध जैसे..

लगा मुझे ,मैं ही हूं वह औरत

उसके दिमाग में दौड़ते हुए हज़ारों ख्याल

हैं मेरे मस्तिष्क की उपज-

दुनिया से है गर हारी

वह मैं ही हूं-थकी हारी ,

बेहाल,मगर शिकन न थी चेहरे पर

वह मैं ही तो हूं!

कोई उसे ढूंढने न आया

क्या यह मैं ही हूं?

अब यहां से जाना है कहां

क्या यह मैं ही हूं?

रास्ता बिसर गई

यादें बिखर गईं

अब फर्क भी क्या पड़ता है

क्या यह मैं हूं? 



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