STORYMIRROR

Rajeev Tripathi

Tragedy

4  

Rajeev Tripathi

Tragedy

मौक़ा

मौक़ा

1 min
387

दिल के टुकड़े मेरे समेटने तो दो

मुझे संभलने का एक मौक़ा तो दो

प्यार में वफ़ा भी कोई चीज़ है

मुझको मेरी मोहब्बत का सिला तो दो

तुमको मिल जायेंगे बहुत चाहने वाले

अपनी महफ़िल में मुझको थोड़ी

जगह तो दो

ना जाने किस बात पर रूठे हो

मुझे मेरा क़सूर बता तो दो

कई बार करते हो लौट आने का

हमसे वादा

ख़ुश होने का हमें एक मौक़ा तो दो

दूर से आती है किसी के रोने की आवाज़ 

सुनकर ख़ुश रहने की उन्हें भी ज़रा 

मोहलत तो दो

दिल कभी बाज़ार में ग़र बिक जाए

हमें भी बिक जाने का ज़रा 

मौक़ा तो दो

तमाम उम्र तेरा इंतज़ार अब शायद ही हो

उम्र मेरी कम है मेरा मिज़ाज पूछ तो लो

वफ़ा के बदले तुम्हें बेवफ़ाई मिलती ग़र

पता चल जाता तुम्हें तुम भी इसी

दुनिया की हो 

दिल के टुकड़े मेरे समेटने तो दो

मुझे समझने का जरा मौक़ा तो दो  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy