मौक़ा
मौक़ा
दिल के टुकड़े मेरे समेटने तो दो
मुझे संभलने का एक मौक़ा तो दो
प्यार में वफ़ा भी कोई चीज़ है
मुझको मेरी मोहब्बत का सिला तो दो
तुमको मिल जायेंगे बहुत चाहने वाले
अपनी महफ़िल में मुझको थोड़ी
जगह तो दो
ना जाने किस बात पर रूठे हो
मुझे मेरा क़सूर बता तो दो
कई बार करते हो लौट आने का
हमसे वादा
ख़ुश होने का हमें एक मौक़ा तो दो
दूर से आती है किसी के रोने की आवाज़
सुनकर ख़ुश रहने की उन्हें भी ज़रा
मोहलत तो दो
दिल कभी बाज़ार में ग़र बिक जाए
हमें भी बिक जाने का ज़रा
मौक़ा तो दो
तमाम उम्र तेरा इंतज़ार अब शायद ही हो
उम्र मेरी कम है मेरा मिज़ाज पूछ तो लो
वफ़ा के बदले तुम्हें बेवफ़ाई मिलती ग़र
पता चल जाता तुम्हें तुम भी इसी
दुनिया की हो
दिल के टुकड़े मेरे समेटने तो दो
मुझे समझने का जरा मौक़ा तो दो
