शहर हमारा कुछ दिन से
शहर हमारा कुछ दिन से
शहर हमारा कुछ दिन से
लगता हैं अनजाना सा
हैं राग द्वेष, समभाव नहीं
जो था अब वो सौहार्द नहीं
ना होली ईद पुरानी है
पहले सा कोई त्योहार नहीं।
डर का एक माहौल सा है
शैतान वहीं पहचाना सा
शहर हमारा कुछ दिन से
लगता हैं अनजाना सा।।
वो तानों का मीठा वार नहीं
बातें हो, वो चौपाल नहीं
"एक कटोरी शक्कर दे दो"
अब ऐसे रिश्तेदार नहीं।
वो बचपन का जो दोस्त मेरा
क्यों दिखता हैं बेगाना सा
शहर हमारा कुछ दिन से
लगता है अनजाना सा।।
अब वैसे हाट बाज़ार नहीं
परचून की वो दुकान नहीं
सुपर मार्केट में भीड़ भरी है
पर वैसा मीना बाज़ार नहीं
बीते कल की बातें सोचूं
खोता हूं दीवाना सा
शहर हमारा कुछ दिन से
क्यों लगता है अनजाना सा।।
