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Shubhra Varshney

Tragedy

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Shubhra Varshney

Tragedy

ना बन जाए इंतजार सदियों का

ना बन जाए इंतजार सदियों का

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सरहद पर गए पिया के इंतजार में,

घर के दरवाजे पर खड़ी औरतें।

न बन जाए इंतजार सदियों का,

हर रोज मानती हैं यही मन्नतें।


लिखी चिट्ठी में छुपा देती हैं,

अक्सर अपनी दरारें दुख की।

सोच कर कि कर्तव्य पथ से,

ना भटके नजर पिया की।


उनकी विरही शाम,

रोज ही सवाल उठा देती है।

भाग दौड़ में बिताकर दिन,

सीधे रात ही आ जाती है।


सुनकर सरहद की हलचल,

रोक कर फिजा समां थम जाता है।

हर रोज बीता सपना,

आँखों में फिर से जल जाता है।


मानती हैं वह पिया की,

होली पर ना आने की मजबूरी।

देश प्रेम में समर्पित,

स्वीकार पिया की होली से दूरी।


उनकी जिंदगी लगी रहती है,

घड़ी से दौड़ लगाने में आमदा।

गर घर आ जाए होली पर पिया,

ना जाने कब होना पड़ेगा तुरंत ही जुदा।



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