दिन-9 गुलाबी ( पवित्र साधना)
दिन-9 गुलाबी ( पवित्र साधना)
मुझे चाहिए साथ तुम्हारा
मन सुभाषित करता तुम्हारा साथ प्यारा।
रिक्त तुम बिन मन का दर्पण
सच्ची प्रीत चाहे त्याग समर्पण।
संगीत के स्वर सा मन है कंपित
तुम्हारे संग की चाह लिए मन हुआ झंकृत।
उन्मुक्त होकर भी स्वच्छंद नहीं है प्रेम
विवाह के आभूषणों से सुशोभित होगा प्रेम।
तुम्हारे हृदय से मेरे हृदय का संवाद
पवित्र साधना ही है मेरे मन का अन्तर्नाद।
स्वच्छंद हठ नहीं वरन साधना है प्रेम
मेरे अंतर्मन की पवित्र ज्योति बना है प्रेम।
विवाह बिन अधूरी रहेगी जिंदगानी
मेरे हृदय को अस्वीकृत ऐसी कोई कहानी।
सजाए माथे कुमकुम का श्रृंगार
बन अर्धांगिनी करूं सदैव इंतजार।
तुम्हारी स्मृतियों से शोभित मेरा मन
पर मैं स्वाभिमानी चाहूं विवाह बंधन।
