Shubhra Varshney

Inspirational

4  

Shubhra Varshney

Inspirational

दिन-4 मैंने खुदसे दोस्ती कर ली

दिन-4 मैंने खुदसे दोस्ती कर ली

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भागते वक्त के संग भाग

मैंने अनमोल क्षण चुराऐ।

कर जिंदगी से आंख मिचौली

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

बंजर पड़ी मन की मिट्टी,

खुशियों के बीजों से भर ली।

छोड़ हताशा व निराशा,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

जो फैल गया दिन बिन बताए,

मैंने मुट्ठी में धूप कैद कर ली।

सांसों में घोल फ़िज़ा की हवा,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

बहती चली हवा के संग मैं,

मैंने इसकी गति पकड़ ली।

जो मिला स्वीकारा मन से,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

कर प्रकृति को अंगीकार,

मैंने उसके रंग चुराए।

हर रंग में ढूंढ आशा,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

देख दुख को आता पास अपने,

मैं खिलखिला के हंस ली।

छोड़कर निराशा का दामन,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

बांध अपने मन की गठरी,

मैंने दूजो के मन की पढ़ ली।

लेखनी से ढाल मन को,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

बदलते दुनिया के रंग में,

रखा गुलज़ार अपना अंदाज।

वक्त की धारा में बह कर,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

पाने को चांद खुशियों का,

मैंने अधूरे ख्वाबों को छोड़ा।

पढ रेख़्ता हक़ीक़त का,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

समय जो बदले रास्ते हर पल,

मैंने थाम ही लीं मंजिलें।

फकत अंदाज़ हुआ तब्दील,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

जब करे सलाम देख लिबास,

करूँ तज़लील पर शुक्रिया अदा ।

गम को करके खुद से जुदा ,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

है वक्त की बात बहुत ही खास,

ढलता है दिन भी शाम पाकर।

फिर ना मान कोई कायदा ,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।

बदलते एहसास जज्बातों में,

नहीं मगरूर मेरा अंदाज।

अपने ही अल्फाजों से होके फिदा,

मैंने खुद से दोस्ती कर ली।



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