दीवाली...।
दीवाली...।
दीवाली खुशी उमंग और उल्लास का त्योहार,
जिसमें अपनेपन की घुलती मिठास,
दुकानें हो दफ्तर गली मोहल्ला या हर द्वार,
रिमझिम रोशनियों से झिलमिलाता है,
सभी के चेहरे पर दीप सा प्रकाश झलकता है,
माताएं घर पर अशोक के पत्ते बांधती है,
और बहुएं मुख्य द्वार पर रंगोली बनाती है,
पूरा शहर रंगोलियों और दीपक की लौ से जगमगाता है,
बच्चे हो या बड़े नये कपड़े पहन इठलाते है,
तो माताएं नयी साड़ी पहन करती जब सोलह श्रृंगार है,
मानो धरा पर स्वर्ग उतर आता है,
मिष्ठानों और पकवानों से महक उठता घर आंगन है,
भक्ति के रस में झूमता नाचता धरा अम्बर और आकाश है,
क्योंकि हुआ वनवास खत्म और लौटें अयोध्या में राम,
सबने खुशी से दीपक जलाएं और मनाया उत्सव है,
तब से चली आ रही यही प्रथा है,
जिसको हर कोई बड़े हर्षोल्लास से बनाता है।
