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मिथलेश सिंह मिलिंद

Tragedy

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मिथलेश सिंह मिलिंद

Tragedy

अखबारों का सच

अखबारों का सच

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अखबारों ने आज कहा कि कल कत्ल चौराहे पर सर-ए-आम हुआ।

क्या लोग अंधे थे वहाँ पर जो यह खून बाजार में खुल-ए-आम हुआ।


बोलियाँ लगती रहीं सब्जियों की हर रोज, उस रोज की ही तरह,

सब तो गनीमत था पर आदमी के आगे आदमी खुद ही नीलाम हुआ।


प्रकृति की भी खरीद-फरोक्ख कल हमने देखी थी जो अखबार में,

पिजड़े में कैद कुछ चिड़ियों की ज़िन्दगी का चौराहे पर ही दाम हुआ। 


जगमगाती रोशनी में हवस का यह ताण्डव नृत्य चंद सिक्कों पर साहिब,

अँधेरी रात पर लांछन अखबारों ने किया मनु रात में बदनाम हुआ।


सबने देखा फटे कपड़े से झाँकते तन को पर क्यों फूटी नहीं आँखें क्या पता,

जिससे पूँछो तो वही कहता है कि मैं तो खुदी से कब का गुमनाम हुआ।


दिन के उजाले में चाय की चुस्की और अखबार का जायका क्या कहना,

चटपटी खबरों से शुरु हुई हर सुबह काहिलो की बाजारों में शाम हुआ।




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