मौन-मानस
मौन-मानस
हर प्रश्न है सम्मुख खड़ा अरु मौन मानस अर्थ है।
जब हो गया निष्प्राण तब उपचार सब बे-अर्थ है।
तूफान से जब डर तुम्हें लगने लगा पहले यहाँ,
पतवार से उस पार की उम्मीद रखना व्यर्थ है।
रण में बिगुल जब बज रहा था मग्न थे परिहास में,
यह लग रहा तेरे लहू में अब नहीं सामर्थ्य है।
निज अस्मिता भय ग्रस्त जब छिपते-छिपाते चल रही,
उत्थान का अभियान सच खुद ही बड़ा असमर्थ है।
जब आश्रमों से माँगते शरणार्थ पालनहार ही,
बस रक्त से सींचा गया परिवार केवल स्वार्थ है।
यदि मरु धरा पर ही विचरना है नियति हर मर्त्य का,
फिर द्रुम दलों ने मरु धरा को कब किया परमार्थ है।