मानवता महज उनमें बस रेंगती है, जिन्दगी भी ऐसों को बस ठेलती है। मानवता महज उनमें बस रेंगती है, जिन्दगी भी ऐसों को बस ठेलती है।
निज भाषा को अपनायें निज संस्कृति के मोती पायें निज भाषा को अपनायें निज संस्कृति के मोती पायें
छू जाना तुम आसमान को बिना कभी भी हिम्मत हारे। छू जाना तुम आसमान को बिना कभी भी हिम्मत हारे।
मेरी भी नैया पार लगा दो, कितनों को तुमने पार किया। मेरी भी नैया पार लगा दो, कितनों को तुमने पार किया।
क्या शौक नहीं इनको, निज जननी पर काम मिले। क्या शौक नहीं इनको, निज जननी पर काम मिले।
फिर द्रुम दलों ने मरु धरा को कब किया परमार्थ है। फिर द्रुम दलों ने मरु धरा को कब किया परमार्थ है।