मजदूर का सपना
मजदूर का सपना
क्या शौक नहीं इनको, ये भी सीना तान चले
आगे-आगे चले स्वयं, पीछे लोग तमाम चले
निकले जिस गली से, वहीं इनको सम्मान मिले
पर किस्मत कहां है इनकी,हर मोड़ पे इन्हें मुकाम मिले
जब-जब चले डगर में, इनको कभी न जाम मिले
मिले न इनसे दीन दुःखी ,हर चौराहे पर सलाम मिले
नौकर चाकर इनके पीछे, धूप में भी इन्हें छांव मिले
क्या शौक नहीं इनको, देश का नौकायान मिले
पर ढह जाते दीवारों से,न सुबह मिले न शाम मिले
हर्जा ख़र्चा , सम्मानों से,यश पूर्वक नाम मिले
पर मजदूरी भी पाते नहीं,इनका कैसे काम चले
क्या शौक नहीं इनको,मोटर से सुबहो शाम चले
कभी मिलती सूखी रोटी, कभी बिन रोटी के काम चले
राशन मिलता और किसी को,कार्ड पे इनका नाम चले
नहीं चाहते वस्त्र-आभूषण,बस टुकवा से ही काम चले
क्या शौक नहीं इनको, करोड़पति में नाम चले
धरा से ले अंबर तक, सदा इनको मान मिले
सत्य सदा ही श्वेत रहे, श्वेत सदा इन्हें न्याय मिले
तालमेल बना रहे हमेशा, इनको बराबर सम्मान मिले
क्या शौक नहीं इनको, निज जननी पर काम मिले।
