जल
जल
"जल है जीवन का आधार, सृष्टि का है अमर श्रृंगार।
जन-जन की यह प्यास बुझाता, हर समारोह में पूजा जाता।।
तोय, नीर, जल कोई कहता, निर्झर वन, थल में है चलता।
कोई भी प्राणी हो धरा पर, बिना नीर बेघर रहता।। "
"इसका उद्गम अद्भुत होता, प्रकृति का इस पर प्रभुत्व होता।
जीवन इसके बिना ना होता, जीवन में जल ही सब होता।।
कोई विप्र के चरण है पखारता, कोई जल से कपड़ा धोता।
कोई मंदाकिनी, भागीरथी, कोई प्रेम से मां गंगा कहता।। "
"कहर की इस अद्भुत घड़ी में, मजदूर भी जल से काम चलाता।
कोई करता नेक काम, कोई गंगा में कचड़ा बहाता।।
जल ही ऐसा भव्य तरल, जिसमें प्राणी हर कार्य है करता।
कोई फेकता लाश का टुकड़ा, कोई दूर से शीश झुकाता।। "
"लॉकडाउन की विषम घड़ी में, घर में मां की पूजा करता।
नित् वंदन करता गंगे का, सफाई का प्रबंध है करता।।
स्वच्छ गंगा से बड़े स्वच्छता, यह समूह है ऐसा कार्य करता।
इसी सोच और गंगा तय में, भी नित् कार्यरत रहता।।
"स्वच्छता का संदेश हमारा, स्वच्छ मिशन का सपना प्यारा।
हर जन की भागीदारी, स्वच्छ होगा फिर राष्ट्र हमारा।।
फिर मां भगवती को भी, मिलेगा गंगा का जल प्यारा।
कामयाब होगा ये मिशन, नवराष्ट्र बनेगा फिर ये हमारा।। "