STORYMIRROR

Ravi PRAJAPATI

Abstract

4  

Ravi PRAJAPATI

Abstract

मेरी मां

मेरी मां

1 min
23.2K

ममता भी तेरी निराली है, मां कोमल फूल की डाली है।

सह जाती कितना कष्ट, मां फिर भी तू मुस्काती है।

भूख सताती जब मुझको, मां अपने तन लिपटाती है।

नहीं खिलाती फल,अनाज, मां दूध की प्याली लाती है।


गुण का क्या गुणगान करूं, मां सर्दी गर्मी सह जाती है।

नसीब ना होता खुद को कपड़ा, पर मां ऊनी कोट दिलाती है।

आता जब बारिश का मौसम, खुद भीग के मुझे बचाती है।

नंगे पाव मां धूप में चलती, मुझे आंचल की छांव ले जाती है।


रूठता जो मैं कभी, वह बहुभांति मुझे मनाती हैं ।

जब हद से ज्यादा होती शरारत, कभी चाटे दो चार लगाती हैं ।

रखकर पत्थर अपने दिल पर, फिर फूट-फूट कर रोती है।

हमसे ज्यादा कष्ट वो पाती, फिर मुस्काती दुलराती है।


गर्भ से ले वृद्धावस्था तक, साथ सदा मां निभाती है।

हम चाहे जो करे सलूक, पर ममता मात लुटाती हैं।

संजोकर रखती प्राण सा, हर कष्ट से मुझे बचाती है।

जब-जब आती कठिन विपदा, मां सिंगार तन का दे देती है।


कभी मां बनती बेटी, कभी पत्नी का फर्ज निभाती है।

कभी बनती बहन किसी की, कभी ममता की नीर बहाती है।

पाती है जन्म एक कुल में, दो कुल का मान बचाती है।

कह न सका रवि कुछ मां, बस यह छोटी सी पाती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract